प्रिय विद्यार्थियों, इस पोस्ट में आचार्यपरिचय Acharya Parichaya (OEC संस्कृत) MCQs है। जो मुख्यतः दिल्ली विश्वविद्यालय के परास्नातक संस्कृत के तृतीय सत्र 3rd Sem(OEC Sanskrit) से संबंधित है तथा संस्कृत की विविध प्रतियोगी परिक्षाओं NET JRF, TGT PGT तथा विश्वविद्यालय स्तरीय परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।
आचार्य पाणिनि को दो साहित्यिक रचनाओं के लिए भी जाना जाता है-
जाम्बवती विजय – आज एक अप्राप्य रचना है जिसका उल्लेख राजशेखर नामक व्यक्ति ने जह्लण की सूक्ति मुक्तावली में किया है। इसका एक भाग रामयुक्त की नामलिंगानुशासन की टीका में भी मिलता है।
पाताल विजय – जो आज अप्राप्य रचना है, जिसका उल्लेख नामिसाधु ने रुद्रटकृत काव्यालंकार की टीका में किया है।
Q10. व्याकरण शास्त्र के त्रिमुनि के रूप में प्रसिद्ध हैं –
दाक्षायण – व्याडि, दाक्षायण नाम से प्रसिद्ध थे। व्याडि तथा दाक्षायण ये दोनों नाम संग्रहकार के ही हैं, ऐसा ‘महाभाष्य तथा ‘महाभाष्य प्रदीपदोद्योत’ से सिद्ध है-
दाक्षि- वामन ने काशिका (6/2/69) में इस नाम का उल्लेख किया है-
कुमारीदाक्षाः । कुमार्यादिलाभकामाः दाक्ष्याद्रिप्रोक्तानि शास्त्राण्यधीयन्ते तच्छिष्यता वा प्रतिपद्यन्ते त एवं क्षिप्यन्ते
यद्यपि दाक्षि और दाक्षायण नामों में गोत्र और युवप्रत्यय के भेद से अर्थ की विभिन्नता प्रतीत होती है तथापि पाणिन और पाणिनि तथा काशकृत्स्न और काशकृत्स्नि आदि के समान दोनों नाम एक ही व्यक्ति के है। इसकी पुष्टि काशिका (4/1/17) के ‘तत्र भवान् दाक्षायणः, दाक्षिर्वा’ उदाहरण से होती है।
Q16. शब्दों के आख्यातज सिद्धान्त को मानने वाले आचार्यों में प्रमुखता से किसका नाम लिया जाता है-
बृहती या निबन्धन – यह शबर भाष्य की व्याख्या है और वास्तविक अर्थ में इसे टीका कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें सर्वत्र भाष्य की व्याख्या ही की गई है, कहीं भी उसकी आलोचना नहीं की गई है।
लघ्वी या विवरण- यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं है। माधव सरस्वती के सर्वदर्शनकौमुदी के अनुसार लघ्वी में 6000 श्लोक हैं और वृहती में 12000 श्लोक। इन दोनों ग्रन्थों पर शानिकनाथ मिश्र ने टीकाएं (पंचिका) लिखकर गुरुमत की पुष्टि की है। ऋजुविमलापंचिका बृहती की टीका है और दीपशिखापंचिका लघ्वी की टीका है। शालिकनाथ ने उक्त दो पंचिकाओं से अलग प्रकरणपंचिका नामक एक स्वतंत्र ग्रन्थ लिखकर प्रभाकर के मत का प्रतिपादन किया है।
कुमारिल ने शाबर भाष्य पर तीन प्रसिद्ध वृत्तिग्रंथ लिखे।
(1) श्लोकवार्तिक – यह प्रथम अध्याय के प्रथम पाद की व्याख्या है।
(2) तंत्रवार्तिक – इसमें पहले अध्याय के दूसरे पाद से लेकर तीसरे अध्यायों की संक्षिप्त व्याख्या की गई है।
(3) दुप्टीका का – इसमें अंतिम नौ अध्यायों की संक्षिप्त व्याख्या की गई है। लोकवार्तिक तथा तंत्रवार्तिक में कुमारिल के असाधारण पांडित्य तथा प्रतिभा का परिचय मिलता है।
Q21. कुमारिल भट्ट के अनुसार प्रमाण है –
क). एक
ख). चार
ग). तीन
घ). छह
✅ सही उत्तर:- घ). छह
१. प्रत्यक्ष
२. अनुमान
३. उपमान
४. शब्द
५. अर्थापत्ति
६. अनुपब्धि
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